मो0 अमन युसूफ - अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय
वक्फ अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है अल्लाह के नाम पर धर्मार्थ कार्यों के लिए सुपुर्द की गयी सम्पति। पैगंबर हज़रत मोहम्मद ने एक तरीक़ा बताया है जिसके तहत ये संपत्ति दान की जाती है।
वक्फ का शाब्दिक अर्थ है, रोकना या बांधना।
जब कोई मुसलमान व्यक्ति धार्मिक आस्था और भावनाओं के तहत धर्मार्थ कार्य करता है और समाज के लाभ और उत्थान के लिए अपनी संपत्ति अल्लाह के नाम पर दान करता है तो उसे वक्फ कहते हैं। जिसका अर्थ है कि समर्पित संपत्ति का स्वामित्व वक्फ करने वाले व्यक्ति से छीन लिया जाता है और उसे ईश्वर द्वारा हस्तांतरित और रोक लिया जाता है। एक बार किसी व्यक्ति द्वारा अपनी सम्पति को वक्फ कर देने के पश्चात वह भविष्य में अपनी सम्पति पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं कर सकता है। भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि दिल्ली सल्तनत में सन 1173 के आस-पास सुल्तान मुईजुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव दिए थे। स्वतंत्रता पूर्व वक्फ का विधान,मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम (1913),मुसलमान वक्फ अधिनियम (1923),मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम(1930),25 जुलाई 1930 को लागू हुआ, जिसे 7 मार्च 1913 से पहले बनाए गए वक्फों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू किया गया। इस अधिनियम के तहत, एक मुसलमान अपनी संपत्ति को अपने परिवार, बच्चों और वंशजों के समर्थन के लिए हमेशा के लिए बांध सकता है। बशर्ते कि वह इस तरह से प्रावधान करे कि अंतिम लाभ स्थायी प्रकृति के धर्मार्थ उद्देश्य को मिले, जो या तो स्पष्ट रूप से या निहित रूप से किया गया हो। इस अधिनियम के तहत, कोई हनफ़ी मुसलमान ट्रस्ट की संपत्ति की पूरी आय या उसमें आजीवन हिस्सेदारी का आनंद नहीं ले सकता। बंगाल राज्य ने बंगाल वक्फ अधिनियम, 1934 लागू किया। इसने पहली बार वक्फ बोर्ड बनाया। वक्फ को अपनी आय का 5% वक्फ कोष में देने के लिए कहा गया था। स्थिति को ठीक करने के लिए, प्रांतीय विधानसभाओं ने अपने स्वयं के कानून लाने शुरू कर दिए। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 100 के आधार पर संभव हुआ।
आजादी के बाद भारत में बाकायदा वक्फ परंपरा को बरकरार रखा गया। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान जाने वाले मु्स्लिम लोग अपनी चल संपत्ति तो ले गए, लेकिन अचल संपत्ति यानी कि उनके घर, मकान, खेत-खलिहान, दुकान वक्त करके चले गए। सबसे पहले संसद ने 1954 में कानून बनाया। वक्फ ऐक्ट 1954, इसके तहत वक्फ की गई संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड दी गई। ये वक्फ बोर्ड भारत की संसद के कानून के तहत बनाया गया है। वक्फ बोर्ड बनाने के अगले ही साल यानी कि 1955 में संसद ने एक और कानून बनाया और इसके तहत देश के हर एक राज्य में वक्फ बोर्ड बनाने का अधिकार दिया गया। वक्फ अधिनियम, 1954 में वक्फ को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, "वक्फ का अर्थ है इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किसी चल या अचल संपत्ति को मुस्लिम कानून द्वारा धार्मिक, पवित्र या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से समर्पित करना।” फिर 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन हुआ। जिसका मकसद राज्यों के वक्फ बोर्ड को सलाह-मशविरा देना था।
वक्फ ऐक्ट 1954 परिस्थिति के हिसाब से कई बार संशोधन संशोधन किया जाता रहा। क्योंकि वक्त की गई संपत्ति का रखरखाव एवं कब्जा मुक्त नहीं होने के कारण इसमें संशोधन की आवश्यकता पड़ती रही इसलिए संशोधन होता रहा। मुख्य तौर पर दो बार संशोधन किया गया। 1995 और आखिरी बार साल 2013 में संशोधन हुआ वक्फ बोर्ड के पास स्वत्व अधिकार दिया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य वक्त की संपत्ति को अतिक्रमण मुक्त करना। वर्तमान समय में,
केंद्र सरकार वक्फ अधिनियम, 1995 में और संशोधन करने के लिए संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया। प्रस्तावित विधेयक 1995 के वक्फ अधिनियम का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम,1995 करने की मांग करता है। और स्पष्ट रूप से "वक्फ" को किसी भी व्यक्ति द्वारा कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करने और ऐसी संपत्ति का स्वामित्व रखने के रूप में परिभाषित करता है। प्रस्तावित कानून में नई धाराएं 3ए, 3बी और 3सी जोड़ी गई हैं, जो वक्फ के निर्माण के लिए शर्तें निर्धारित करती हैं और कहती हैं कि कोई भी व्यक्ति तब तक वक्फ का निर्माण नहीं करेगा जब तक कि वह संपत्ति का वैध मालिक न हो और ऐसी संपत्ति को हस्तांतरित या समर्पित करने में सक्षम न हो। महत्वपूर्ण बात यह है कि विधेयक में धारा 40 को हटा दिया गया है, जो वक्फ बोर्ड की शक्तियों से संबंधित है कि वे तय करें कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या
नहीं। यह जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने में मध्यस्थ बनाता है कि कोई सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि प्रस्तावित कानून से पहले मौजूदा अधिनियम के तहत पंजीकृत प्रत्येक वक्फ को नए अधिनियम के लागू होने के छह महीने के भीतर केंद्रीय पोर्टल पर विवरण दर्ज करना होगा।वक्फ भूमि की गलत घोषणा को रोकने के लिए विधेयक में कहा गया है: "इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।” इसमें कहा गया है कि यदि यह प्रश्न हो कि कोई संपत्ति सरकारी है या नहीं, तो इसे कलेक्टर के पास भेजा जाएगा, जिसके पास यह निर्धारित करने का अधिकार होगा कि “ऐसी संपत्ति सरकारी है या नहीं और वह अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगा।”
विधेयक में केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की संरचना में बदलाव करने और मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रावधान है। इसमें बोहरा और अघाखानियों के लिए एक अलग 'औकाफ बोर्ड' की स्थापना का भी प्रावधान है। वक्फ ऐक्ट 1954 वक्फ अधिनियम और वक्फ संपत्तियां संविधान और शरीयत आवेदन, 1937 द्वारा संरक्षित हैं। "इसलिए सरकार ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती जिससे इन संपत्तियों की प्रकृति और स्थिति में बदलाव हो।”