शहीदे ए आज़म भगत सिंह की जयंती हर्षोल्लास साथ मनाई गई।

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बिहारशरीफ: बिहारशरीफ के पचासा चौक बाबा साहेब के प्रतिमा के समक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के तत्वाधान में शहीद ए आजम भगत सिंह की जयंती माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित करते हुए धूमधाम के साथ मनाई गई। 

इस मौके पर डॉ भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल पासवान एवं मंच के प्रदेश अध्यक्ष सह फुटपाथ संघर्ष मोर्चा के जिला अध्यक्ष रामदेव चौधरी अखिल भारतीय रविदासिया धर्म के जिला अध्यक्ष सह राजगीर कबीर मठ के संचालक महंत एवं अध्यक्ष बलराम साहब ने संयुक्त रूप से कहा कि भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 बंगा गांव पश्चिमी पंजाब में हुआ था,जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यापति कौर था। वे एक किसान परिवार से थे। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।

वर्ष 1922 में चौरी- चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी ने जब किसानों का  साथ नहीं दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। उसके बाद उनका अहिंसा से विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे की सहस्त्र क्रांति है स्वतंत्रता दिलाने का एकमात्र रास्ता है। उसके बाद वह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हुए गदर दल के हिस्सा बन गए। काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।

भगत सिंह ने राजगुरु सुखदेव से मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जीपी संडास को मारा था। इस कार्रवाई में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने पूरी मदद की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन केंद्रीय असेंबली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जागने के लिए बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर तीनो ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। लाहौर के सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई। इस तरह तीनों हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए।

शहीद भगत सिंह को उनकी जयंती पर याद करते हुए भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके बलिदान और अटूट समर्पण पीढियो को प्रेरित करता रहेगा। साहस की एक मिसाल वे हमेशा न्याय और स्वतंत्रता के लिए भारत की अथक लड़ाई के प्रतीक रहेंगे।

इस मौके पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के  अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष सादिक अजहर रामप्रसाद दास रामप्रीत दास अमित कुमार संख्यानुपाती भागीदारी पार्टी प्रदेश महासचिव मुन्ना कुमार नगीना पासवान नवल रविदास बटोरन रविदास श्रीकांत पासवान आदि दर्जनों लोग उपस्थित थे।

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