बिहार का उभरता हुआ एक सितारा.....

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          प्रिय.... अमन यूसुफ भईया, ........

किसी का संघर्ष जब औरों के लिए प्रेरणा बन जाता है तो लगता है संघर्ष से खूबसूरत चीज इस दुनिया में शायद ही कुछ हो। मैं आपको देखते हुए उस खूबसूरती को महसूस कर पाता हूं। मैं ही नहीं, मेरे जैसे हजारों युवा जो गांव की पगडंडियों से होते हुए बड़े शहरों में अपनी माटी की खुशबू लिए एक नई दुनिया गढ़ना चाहते हैं। 


"संघर्ष सुंदर होता है, 

इस उम्मीद से आसमान को ताकने के लिए

कम से कम ज़मीं पर एक सितारा तो चाहिए ही।"


यकीन मानिए यह पंक्ति मैं कभी नहीं लिख पाता अगर आप नहीं होते। मेरे मानस पटल पर आपकी सहजता ने जो प्रेमिल अधिकार स्थापित किया है यह उसी की परिणति है। मैंने लिखा नहीं है आपने लिखवाया है। 


बरगद जितना विशालकाय होता है उतना ही स्वयं को जमीं से जोड़े रखता है। उसके आस-पास कितने ही परिवार अपना जीवन-निर्वहन करते हैं । विशालकाय होना बरगद की ख़ासियत नहीं है, उसकी ख़ासियत जमीं से जुड़े रहना है और जमीं से जुड़े रहना ही उसे विशाल बनाता है । 


मैं हर बार बरगद को देखते हुए आपको महसूस करता हूं । आपका कद जितना विशाल है उतना ही आप जमीं से जुड़े हैं। ये दोनों बातें इस बाजारीकरण के दौर में एक ही व्यक्ति में होना थोड़ा मुश्किल है । किंतु, आपके व्यक्तित्व ने इस बात की प्रासंगिकता को बल दिया है। 


अक्सर देखा गया है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व और कृतित्व में एक बड़ा फासला होता है। किंतु, आपको जानकर ऐसा कभी नहीं लगा । आपका व्यक्तित्व आपके बिहार से लॉ के छात्र को परिभाषित करता है । जहां एक तरफ़ बिहार लॉ के छात्र होने के मापदंड तय किए गए हैं वहीं आपने अपना एक अलग मापदंड स्थापित किया है और बता दिया है कि बिहार के लॉ के छात्र होने के लिए बल की हनक नहीं; आदमी की अपनी सहजता जरुरी है। 


हम जिस समाज में पले बढ़े हैं। जिस समाज ने हमें पाला पोषा है उसे आपने अपनी तरफ से देने की जो कोशिश की है वो वाकई प्रशंसनीय है। एक (सुप्रीम कोर्ट के ) वकील के तौर पर हमारा समाज यही तो अपेक्षा करता है। आपकी सहजता को देखकर मुझे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता याद आती है-



"घास की एक पत्ती के सम्मुख मैं झुक गया 

और मैंने पाया कि 

मैं आकाश छू रहा हूँ। "


मैं अक्सर सोचता हूं खेतों में लगी फसलें इतनी खुबसूरत क्यों दिखती है ? बिना इत्र के किताबों के पन्ने इतने सुगंधित क्यों होते हैं ? बिना मिले और बिना देखे किसी से प्यार कैसे हो सकता है ? किंतु, आपकी उपस्थिति ने इन सारे सवालों को दर्पण की तरह स्पष्ट कर दिया है।


इंसान जबतक जमीन से जुड़ा होता है वो खुबसूरत दिखता है। जैसे जमीन से जुड़ी फसलें । उसकी बोली लोगों को आकर्षित करती है जैसे किताबों के शब्द इत्र बनकर लोगों को । आत्माओं को मिलने के लिए तन की जरूरत नहीं होती, उनके लिए जरूरी होता है मन और मन मिलते ही एक-दूसरे से हम प्यार कर बैठते हैं। आप इस बिहार से एक छोटे से शहर बिहार शरीफ से निकलकर सुप्रीम कोर्ट में इंटर्नशिप एवं बार काउंसिल आफ दिल्ली में एनरोलमेंट होना और के सुप्रीम कोर्ट में रेगुलर प्रैक्टिस होना बहुत बड़ी बात है। पर रंग जमाते रहिए और बता दीजिए पूरी दुनिया को कि गांव की माटी ने ही रची है ये पूरी दुनिया। इसी के साथ मैं आप को बहुत-बहुत बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं। आपसे उम्मीद ही नही पूर्ण विश्वास है कि जो जिम्मेदारी आपको दी गयी है आप उसको पूर्ण निष्ठा एवम् ईमानदारी से निभाएंगे।

✍️ मो० हमजा अस्थानवी

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